How to grow Bottle gourd from seed in hindi

Flowers / vegetable / Gardening tips in Hindi

     Bottlegourd Gardening tips in Hindi 

नमस्कार ! बेलवर्गीय सब्जियों vegetable में लौकी Bottle  gourd का प्रमुख स्थान है। इसे लौकी घीया के नाम से भी जाना जाता है। लौकी के हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाइयाँ, रायता, अचार, कोफ्ते, आदि बनायें जाते हैं। 

                 
             Dhaniye kaise ugaaye

         लौकी की उन्नत संकर किस्में 
(1) ➡️ पूसा समर प्रोलिफिक लौंग 
(2) ➡️ पूसा नवीन 
(3) ➡️ कल्याणपुर हरी लम्बी 
(4) ➡️ हिसार सलैक्शन लम्बी 

              लौकी के लिए जलवायु 

जलवायु ➡️ लौकी की खेती के लिये गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। लौकी के लिए तापमान दिन में 30-35° से ग्रेड और रात में 18-22°से ग्रेड ताापमान इसकी वृद्धि एवं फलन के लिये उपयुक्त माान जाता है। लौकी पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है। लौकी को गर्मी एवं वर्षा दोनों ही मौसमों में उगाया जा सकता है। 

                   भूमि की तैयारी 

भूमि की तैयारी ➡️ लौकी विभिन्न प्रकार की मादाओं में उगाई जाती है। किन्तु उचित जल निकास वाली जीवांश युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती हेतु सवोंत्तम मानी गयी हैं। वैसे उदासीन पी॰ एच॰ मान वाली भूमि इसकेलिये उत्तम रहती हैं। नदियों के किनारे वाली भूमि भी इसके लिए सफल उत्पादन हेतु अच्छी रहती हैं। अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें । इसके उपरान्त 2-3 बार हैलो या कल्टीवेटर से जुताई करें ।
पर प्रत्येक जुताई के उपरान्त पाटा अवश्य लगायें 

                 खाद एवं उर्वरक fertilizer 

खाद एवं उर्वरक ➡️ मृदा जांच के आधार पर खाद एवं उर्वरक का उपयोग करना चाहिए यदि किसी कारणवश मृदा जांच न हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर निम्न मात्रा में खाद एवं उर्वरक का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।
      गोबर खाद      ➡️      100 क्विंटल 
      नाइट्रोजन       ➡️        60 किलो 
      फाॅस्फोरस      ➡️         60 किलो 
      पोटाश           ➡️          100 किलो  
अन्तिम जुताई से 3 सप्ताह पूर्व गोबर की खाद भूमि में समान मात्रा में डाल देनी चाहिए । नाइट्रोजन की आधी मात्रा,  फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा का मिश्रण बनाकर अन्तिम जुताई के समय भूमि में डाल देनी चाहिए । नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बाँटकर दो बार में देनी चाहिए । प्रथम जब पौधों पर 4-5 पत्तियां निकलने पर और दूसरी जब फूल निकलने पर प्रारम्भ हो जाएँ 
                           बो आई 

बो आई ➡️ भारत के मैदानी क्षेत्रों में लौकी की बो आई गर्मी एवं वर्षा दोनों ही मौसमोंमें की जाती है । ग्रीष्मकालीन फसल को फरवरी-मार्च में और वर्षाकालीन फसल को जून-जुलाई में बोते हैं। 

                       बीज की मात्रा 

बीज की मात्रा ➡️ गर्मी वाली फसल के लिये 40-60 किलो और वर्षाकालीन फसल के लिये 30-40किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है । 

                          बीजोपचार 
बीजोपचार ➡️ फसल को फफूँदी जनित रोगों से बचाने के लिए बीज को बोने से पहले एग्रोसन जी॰एन॰ ( 2 ग्राम दवा पर प्रति 1किलो बीज ) से उपचारित करके बोने होता है ।

                  बोने की विधि 
लौकी की वैसे तो दो प्रकार से बो आई की जाती है ।

          (1) नालियों में बो आई करना 
ग्रीष्मकालीन फसल को अधिक पानी की आवश्कता होती है । इस समय फसल की नालियों में बो आई करनी चाहिए । इस विधि में 3 मीटर फासले पर लगभग एक मीटर चौड़ी नालियाँबनाते है ।  और इन्हीं नालियों के दोनों किनारों पर दो थालों  की निकटतम दूरी 1 मीटर रखते हुए थालों  में बीज बोये जाती है।  एक थाले में 4-5 बीज बोये जाते हैं । 

     लौकी bottle gourd के बीज seeds को जल्दी उगाने का तरीका

 बीजों को बोने से पूर्व भिगोकर गीले कपड़े में लपेटकर किसी गर्म स्थान पर रखकर अंकुरित कर लेते हैं। ऐसा करने से फसल कुछ अगेती तैयार हो जाती है 

                  सिंचाई एवं जल निकास

लौकी की फसल की सिंचाई इस  बात पर निर्भर करती है । कि उसे किस मौसम में उगाया जा रहा है ।  ग्रीष्मकालीन फसल में अधिक सिंचाइयो  की आवश्यकता होती है।  आवश्यकता अनुसार 7-10  दिन की अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए।  वर्षाकालीन फसल में  प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  यदि लंबे समय तक वर्षा ना हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।  खेत में वर्षा ऋतु में फालतू पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।  अन्यथा पौधे  सूख करके खराब हो जाती हैं। या मर जाती हैं अतः फालतू पानी को निकालने की तुरंत व्यवस्था  करनी चाहिए।
  
                पौधे की सुरक्षा plant care 

खरपतवार नियंत्रण ➡️  लौकी की भरपूर उपज लेने हेतु खेत का खरपतवारों से मुक्त रहना नितान्त  आवश्यक है।  इसके लिये ग्रीष्मकालीन एवं  वर्षाकालीन  फसल में क्रमशः 2-3 और 3-4  बार निराई करनी चाहिए। ध्यान रखें कि लौकी की गहरी निराई ना करें  क्योंकि लौकी उथली जड़ों वाली फसल हैं । अन्यथा पौधों की जड़े कट जायेंगी निराई करने से खरपतवार  समाप्त हो जाता है। साथ ही भूमि में वायु का संचार हो जाता है। पौधों की बढ़बार एवं विकास भी अच्छा होता है अन्ततः  उपज भी अधिक और अच्छी मिलती हैं ।

           लौकी में लगने वाले प्रमुख कीट 

फल मक्खी ➡️  यह फलों के छिलकों के नीचे अंडे देती है।   जिनमें से सूंडियाँ  निकलकर  गूदे में प्रवेश कर जाती हैं।  जिसके कारण फल सड़कर जमीन पर गिर जाते हैं।  सूखे मौसम में इस कीट की संख्या बहुत कम हो जाती है।  किंतु वर्षा के मौसम में इसकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।  मक्खी जिस जगह अंडे देती है। वहां पर छोटे-छोटे निशान दिखाई देते हैं।  जो गोंद जैसे पदार्थ से ढके रहते हैं।  मादा अंडा देने से पूर्व कई बार फल में छिद्र करती है। जिससे फल के ऊपर रस निकल आता है। और यह मक्की लौकी के फलों को खराब कर देती है

              इस कीट की रोकथाम

रोकथाम ➡️  कीट से प्रभावित फलों को तोड़कर फेंक देना चाहिए।  या फिर फलों की प्रारम्भिक  अवस्था में मैलाथियाॅन ( 0•03 प्रतिशत)   घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। ताकि इसकी सूंडियाँ मर जायें ।

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