पालक की उन्नत खेती कैसे करें?

 पालक की उन्नत खेती // dvanced cultivation of spinach

परिचय 》पालक एक ऐसी सब्जी है। जो हर किसी को पसंद आती है। पालक की खेती भारत में बड़ेेेे स्तर पर की जाती हैं। किसान भाई पालक की खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। पालक में बहुत सारे विटामिन पायें  जाते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए के काफी फायदेमंद है। आज हम आपके साथ पालक को उगाने की पूरी जानकारी शेयर करने वाले हैं।

उत्पत्ति 》दुनिया की कई स्वादिष्ट सब्जियों की तरह पालक की उत्पत्ति प्राचीन फारस में हुई है। जो अब ईरान और पड़ोसी देशोंं में है। फिर पालक को कुछ लोगों द्वारा भारत में लाया गया। और फिर भारत से चीन में जहां इसे 647 ईस्वी में फारसी सब्जी के रूप में जाना जाता था।



जलवायु 》पालक ठंडेे मौसम की फसल है। इसके अंदर पाले को सहन करने की विशेष क्षमता रहती है। परंतुुुु गर्म जलवायु में पालक की अच्छी पैदावार होती है। विलायती पालक पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्रों में शरद ऋतु में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।

भूमि》पालक की फसल को कई प्रकार की भूमि मेंं उगा सकते है। लेकिन इस फसल के अच्छे उत्पादन हेतु अच्छे जल निकाय रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम और अच्छी मानी गई है। पालक की फसल थोड़ी क्षारीय मृदा को भी सहन करने की क्षमता होती है।



खेत की तैयारी》पालक की बोआई करने से पहले भूमि की 2 से 3 बार अच्छे तरीके से जुताई कर भूमि को समतल बना लेना चाहिए। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध खेत तैयार करते समय ही कर लेना चाहिए। ताकि जब भी वर्षा हो और वर्षा का पानी खेत मेंं जमा ना हो सके।

उन्नत किस्में》पालक की खेती से अधिकतम उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र एवं जलवायु के आधार पर किस्मों का अच्छा चयन करें। पालक की प्रजातियां कुछ इस प्रकार है।

 पूसा पालक
■ पूसा हरित
■ पूषा ज्योति
■ हिसार सिलेक्श 23
■ आल ग्रीन

बीज की मात्रा 》पालक की खेती के लिए लगभग 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। लेकिन छिड़काव विधि से 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।

 बुवाई का समय 》पालक मैदानी क्षेत्रों में जून के प्रथम सप्ताह से नवंबर के अंतिम सप्ताह तक बुुवाई करते हैं। विलायती पालक की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर करते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पालक की बुवाई मार्च के मध्य से मई के अंत तक की जाती है। पालक को छिड़काव विधि से या फिर क्यारियों में उगाया जा सकता है। और पौधों से पौधों की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।



खाद एवं उर्वरक》गोबर की सड़ी हुई खाद 18 से 20 टन प्रति हेक्टेयर या 7 टन वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर जरूरी होती है। अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप से मिट्टी में खाद को मिला देना चाहिए। इसके अलावा 50 किलोग्राम नत्रजन 40 किलोग्राम फास्फोरस
तथा 40 पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। नेत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत की मिट्टी में मिलाएं। एवं नेत्रजन की शेष मात्रा को तीन भागों में बांट लें। पालक की फसल की प्रत्येक कटाई के बाद नेत्रजन का छिड़काव करें। इससे पालक की पत्तियों की बढ़वार अच्छी होती है।

 सिंचाई प्रबंधन 》पालक के बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए नमी अत्यंत आवश्यक है। नमी की कमी महसूस होने पर खेत की जुताई करने से पहले सिंचाई अवश्य करें। बीज अंकुरण के बाद गर्म मौसम में हर 8 से 10 दिन बाद सिंचाई करें। और शरद मौसम में पालक को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं। शरद मौसम में 10 से 15 दिन बाद सिंचाई करें।

 खरपतवार नियंत्रण》पालक की बुवाई के 18 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए। बाकी खरपतवार के अनुसार करनी चाहिए। यदि खेत में खरपतवार की मात्रा अधिक है। तो पालक की बुवाई के तुरंत 2 दिन बाद 3.5 पेंडीमेथलिन 30% का प्रति हेक्टेयर 900 से 1000 लीटर में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जिससे सभी खरपतवार नष्ट हो जाए।

रोग एवं रोकथाम》पालक की फसल में रोगों का प्रभाव बहुत ही कम मात्राा में होता है। इसके लिए तो बीज को उपचारित करके बीज को बोना चाहिए।
 पालक में माहू, बीटल और कैटरपिलर कीट पालक की फसल को नुकसान पहुंचाते। इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर मेलाथियान को 750 से 800 इ
लीटर पानी में मिलाकर पालक की फसल में प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

 पालक की कटाईपालक की कटाई बीज बोने के 30से 35 दिन बाद पालक की पहली कटाई कर देनी चाहिए। इसके बाद 15 से 20 दिन के अंतराल पर 8 से 10 कटाई कर सकती है।

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